मन
कब क्यु कैसे सब उपज है उसकी
चाहे अन्चाहे सब फितरत है जिसकी
सब को वही नचाता है कहने को मन कहलाता है I
समय के साथ पनपता है पलता है बढ्ता है
न जाने कैसे कैसे सवरता है
निखरता है और सोच की पैदाइश करता है I
जो कुछ देखा समझा सब तो इसी ने
जो किया जो कहा सब इसी ने
फिर सोचता है ऐसा क्यु की ये बेलगाम बदनाम है ?
बदनामी में भी तो जुनून होता है
मन हि तो है जो हर ओर खिचता है
शिखर से धरातल तक आकाश के बादल तक
पाता नही कहा कहा ले जाता है
बाँध लिया तो बिजली बिखर गया तो बाढ
मन तेरी लीला तो है अपरम्पार II
चाहे अन्चाहे सब फितरत है जिसकी
सब को वही नचाता है कहने को मन कहलाता है I
समय के साथ पनपता है पलता है बढ्ता है
न जाने कैसे कैसे सवरता है
निखरता है और सोच की पैदाइश करता है I
जो कुछ देखा समझा सब तो इसी ने
जो किया जो कहा सब इसी ने
फिर सोचता है ऐसा क्यु की ये बेलगाम बदनाम है ?
बदनामी में भी तो जुनून होता है
मन हि तो है जो हर ओर खिचता है
शिखर से धरातल तक आकाश के बादल तक
पाता नही कहा कहा ले जाता है
बाँध लिया तो बिजली बिखर गया तो बाढ
मन तेरी लीला तो है अपरम्पार II